ये कैसी दहेज प्रथा चल रही,

ये कैसी दहेज प्रथा चल रही,
जिसमें भारत माता की बेटियाँ जल रही।
जबसे दहेज प्रथा की रीत चली,
ना जाने कितने घर बरबाद हो गयी।

माँ के घर से जाते ही बेटी,
ससुराल में कठपुतली बन कर रह गयी।
दहेेज रूपी दिपक की कीड़े,
कितने घरो को खोखला कर खा गयी।

बेटियों की सुख चैन छिन,
गुलामी की जिन्दगी बना दी।
दहेज की आग में,
हजारो घर जलकर खाक हो गयी।

दहेज की नाम सुनते ही,
मा—बाप की रूह काँप उठी।
अपनी बेटी की खुशियों के लिए,
अपनी सब कुछ नीलाम करने लगी।

फिर भी दहेज की आग शांत नही होती,
बेटियों की जान लेकर छोड़ती।
ये कैसी दहेज प्रथा चल रही,
जिसमें भारत माता की बेटियाँ जल रही।
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